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आखिर क्‍यों खराब हुई किसानों की माली हालत ? क्‍या है कृषि क्षेत्र की गंभीर चुनौतियां।

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आखिर क्‍यों खराब हुई किसानों की माली हालत ? क्‍या है कृषि क्षेत्र की गंभीर चुनौतियां।

नई दिल्ली, सुरेंद्र प्रसाद सिंह। लेखक के अपने विचार हैं जिनसे आप सहमत हैं या नहीं फिर भी पढ़ें ,------------ देश के किसानों की माली हालत दिनोंदिन क्यों खराब होती गई और इनका भविष्य क्या है, इसे समझने के लिए यह भी जानना होगा कि कृषि क्षेत्र की इस गंभीर चुनौती से निपटने में कहां चूक हुई और इस पर चर्चा से मुंह क्यों चुराया जा रहा है। तथ्यों व तर्को को समझने में कोताही बरतने वाले न सिर्फ कृषि क्षेत्र का नुकसान कर रहे हैं, बल्कि पूरी ग्रामीण अर्थव्यव्यवस्था की लुटिया डुबोने पर भी तुले हुए हैं।
कृषि क्षेत्र उन्हीं जर्जर हो चुके नियम-कानून
1- एग्रीकल्चर सेक्टर की मौजूदा चुनौतियां पहली हरित क्रांति के जमाने की चुनौतियों और मुश्किलों से बिल्कुल विपरीत और अलग हैं। यही वजह है कि हमारे पास इस क्षेत्र की मौजूदा चुनौतियों से निपटने के लिए न तो पर्याप्त इन्फ्रास्ट्रक्चर और न कानून हैं। इसलिए गुजरे जमाने के नियम कानूनों में आमूल-चूल बदलाव की सख्त जरूरत है। बीती सदी के सातवें और आठवें दशक में खाद्यान्न की घरेलू कमी को पूरा करने के लिए कई तरह की वित्तीय मदद दी गई और उसके अनुरूप कानून बनाए गए।
2- उत्पादन बढ़ाने और किसानों को बाजार का समर्थन देने के लिए सरकारी खजाने से तरह-तरह की सब्सिडी और वित्तीय मदद का प्रविधान किया गया। इन समग्र कोशिशों से खाद्यान्न की कमी की समस्या खत्म हो गई। खाद्यान्न की पैदावार खपत से बहुत अधिक होने लगी और देश निर्यातक बनने की राह पर चल पड़ा। लेकिन कृषि क्षेत्र उन्हीं जर्जर हो चुके नियम-कानूनों का बोझ ढोए चला आ रहा है।
3- राजनीतिक वजहों से नियम-कानून की वही पुरानी जर्जर व्यवस्था आज भी लागू है, जबकि देश उदारीकरण की शुरुआत को भी तीन दशक पीछे छोड़ चुका है। हरित क्रांति के समय खाद्यान्न की व्यवस्था के लिए भारतीय खाद्य निगम (एफसीआइ) की स्थापना की गई, न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) का प्रविधान किया गया और आवश्यक वस्तु अधिनियम बनाया गया। करीब चार दशक पहले ये सभी कदम खाद्यान्न की कमी को पूरा करने के लिए उठाए गए थे और यही सब प्रविधान सरप्लस खाद्यान्न पैदावार के मौजूदा युग में भी जारी हैं। ऐसे में देश के लिए बेहद जरूरी हो गया है कि वह जरूरत से अधिक पैदावार के प्रबंधन के बारे में गंभीरता से विचार करे।
4- कृषि क्षेत्र का संकट यह है कि इसके लिए उसके पास न तो पर्याप्त तरीके हैं, न उचित कानून हैं। इस क्षेत्र के लिए कोई संस्थागत व्यवस्था तक नहीं है, किसानों को बाजार में अपनी उपज को बेचने अथवा भंडारण आदि की कोई उचित जानकारी देने का इंतजाम नहीं है। दूसरी तरफ, सरप्लस खाद्यान्न की चुनौती का मुकाबला करना किसानों के लिए पहले के मुकाबले ज्यादा गंभीर है।
आखिर क्‍या कहते हैं विशेषज्ञ
 एक्सपर्ट की राय
1- कृषि व खाद्य मामलों के विशेषज्ञ विजय सरदाना का कहना है कि कृषि क्षेत्र में आधुनिक टेक्नोलाजी का प्रयोग खासा बढ़ा है। इससे उपज बढ़ेगा और किसानों की समस्या आने वाले दिनों में जिससे समस्याएं और बढ़ेंगी। इन समस्याओं से मुकाबला करने के लिए पुराने सोच को पीछे छोड़ सरप्लस खाद्यान्न के सोच से नीतियां बनानी होंगी। उसी हिसाब से कानून बनाना और बुनियादी ढांचागत विकास करना होगा, तभी किसानों के हित सधेंगे, उनका कुछ फायदा होगा।
2- उन्‍होंने कहा कि इसमें सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि हर तरह की मदद के लिए सरकार की तरफ देखना किसानों और उनसे भी ज्यादा उनके लिए राजनीति करने वाले लोगों की आदत में शुमार हो चुका है। लेकिन सरकार के लिए किसी भी क्षेत्र की मदद की एक सीमा है। उस सीमा के बाहर किसानों को केवल बाजार बचा सकता है।
3- किसानों को सतत लाभ के लिए बाजार में अपनी ताकत बनानी होगी। ऐसे में बाजार में किसानों को शोषण रोकने के लिए पुख्ता कानून की सख्त जरूरत है।कुल मिलाकर कहें तो उपभोक्ताओं और किसानों के बीच एक बाजार है, जहां किसानों को मजबूत होना होगा। उपभोक्ता के खर्च का अधिकतम हिस्सा किसानों तक पहुंचाने वाली प्रणाली अपनानी होगी। यह तभी संभव है, जब बिचौलियों की संख्या सीमित होगी।
4- उपभोक्ता व किसान के बीच की दूरी कम कर देने से काफी हद तक समस्या का समाधान संभव है। बाकी बची कमी को सरकार पूरा कर सकती है। देश की 60 प्रतिशत आबादी खेती पर निर्भर है और देश में करदाताओं की संख्या कुल आबादी का मात्र चार प्रतिशत है। बदलते जमाने में मुट्ठी भर लोगों की जेब के भरोसे खेती को लहलहाते देखने का सपना पूरा नहीं होने वाला है।

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