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मध्यप्रदेश में दो बार कांग्रेस की सरकार सिंधिया परिवार के कारण सत्ता से बाहर हुई l

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मध्यप्रदेश में दो बार कांग्रेस की सरकार सिंधिया परिवार के कारण सत्ता से बाहर हुई


मध्यप्रदेश की राजनीति में राजमाता विजया राजे सिंधिया का नाम हमेशा एक बड़े राजनीतिज्ञ के तौर पर लिया जाता रहा है। हालांकि कई बार उन्हें इस क्षेत्र में कुछ ऐसा सामना भी करना पड़ा था जिसका अंदेशा उन्हें खुद नहीं था। ऐसा ही एक किस्सा है, जब एक सीएम ने उनकी फाइल पर ‘ऐसी की तैसी’ लिख दिया। क्या था पूरा मामला पढ़िए ये रिपोर्ट 
ज्योतिरादित्य सिंधिया की मां और ग्वालियर की राजमाता के राजनितिक किस्से और अपमान का बदला लेने की कहानियां अक्सर चर्चाओं में बना रहता है। आज हम आपको एक ऐसी कहानी से रूबरू कराने जा रहे हैं जब एक मीटिंग के कारण कांग्रेस को मध्यप्रदेश की सत्ता खोना पड़ा था।
60 के दशक में ज्योतिरादित्य सिंधिया की दादी राजमाता ने मध्यप्रदेश में गिराई थी कांग्रेस की सरकार, आगे हुआ था कुछ ऐसा 
राजमाता विजया राजे सिंधिया ने भी राजनीति की शुरूआत कांग्रेस से की थी। हालांकि 10 साल बाद ही उनका कांग्रेस से मोह भंग हो गया और उन्होंने कांग्रेस छोड़ निर्दलीय चुनाव लड़ा। चुनाव के बाद 36 विधायकों ने भी कांग्रेस छोड़ दिया और राजमाता के साथ हो लिए ।
 ज्योतिरादित्य सिंधिया एवं उनकी दादी राजमाता ने मध्यप्रदेश में गिराई थी कांग्रेस की सरकार,
 राज परिवार अभी भी अपना अपमान वर्दास्त नहीं कर पाते इसीलिए मध्यप्रदेश में सिंधिया परिवार ने कांग्रेस को दो बार सरकार से सत्ता खोनी पढ़ी ।
राज माता के समय दरअसल राज्य में कांग्रेस से डी पी मिश्रा मुख्यमंत्री थे। ग्वालियर में हुए छात्र आंदोलन को लेकर मुख्यमंत्री और राजमाता में अनबन हो गई थी। एक मीटिंग में राजमाता को सीएम ने काफी देर तक इंतजार करवाया। जिसे राजमाता ने अपना अपमान समझा और कांग्रेस छोड़ दी।
कांग्रेस छोडने के बाद उन्होंने निर्दलीय चुनाव लड़ा और जीत गईं। चुनाव के बाद कांग्रेस से भी विधायक टूटे। चुनाव के बाद विजया राजे सिंधिया ने इन विधायकों के समर्थन से  गोविंदनारायण सिंह को मुख्यमंत्री बनवा दिया। इसी तरह मध्य प्रदेश में पहली गैर कांग्रेसी सरकार बनी और डीपी मिश्र को इस्तीफा देना पड़ा था। हालांकि गोविंद नारायण से भी राजमाता की उतनी बनी नहीं।
 एक किताब के अनुसार गोविंदनारायण सिंह का कार्यकाल भारी अनिमियताओं के लिए जाना गया। राजमाता सीधे सरकार में तो नहीं थी लेकिन उनका हस्तक्षेप लगातार जारी है। राजमाता संयुक्त विधायक दल की नेता थी। सरकार पर नजर रखने के लिए राजमाता ने अपने सबसे खास सरदार आंद्रे को मध्यथ बना रखा था। शुरूआत में तो गोविंदनारायण, राजमाता के सभी आदेशों को मान लेते थे लेकिन बाद में वो भी इससे तंग आ गए। राजमाता के नाम से अधिकारियों की नियुक्ति और ट्रांसफर होते रहा।
राजमाता की फाइल आती और उसे ज्यों का त्यों पास कर दिया जाता। इसी तरह की एक फाइल पर गोविंद नारायण ने लिख दिया ‘ऐसी की तैसी’। बस फिर क्या था हो गया बवाल। लोग कहने लगे की सीएम ने राजमाता की फाइल पर गाली लिख दी है। बाद में गोविंदनारायण ने सबको समझाया कि इसका मतलब होता है ‘एज प्रपोज्ड’, यानि की आपने जैसे लिखा वैसा माना।
हालांकि गोविंदनारायण भी ज्यादा दिन नहीं चली और 2 साल के अंदर ही उन्हें ये कुर्सी छोड़नी पड़ गई।

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