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राहुल गांधी के करीबी हरीश चौधरी को मिली पंजाब की कमान, संभाल पाएंगे सिद्धू और चन्नी को

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राहुल गांधी के करीबी हरीश चौधरी को मिली पंजाब की कमान, संभाल पाएंगे सिद्धू और चन्नी को 

*भोपाल एवं पंजाब से संपादित राधावल्लभ शारदा एवं लीलाधर शर्मा की रपट **
कांग्रेस पार्टी ने हरीश रावत की जगह एक बार फिर हरीश चौधरी को पंजाब और चंडीगढ़ का प्रभारी नियुक्त किया है। तत्काल प्रभाव से उनका कार्यकाल शुरू हो गया है। चौधरी पंजाब कांग्रेस में आंतरिक कलह के दौरान काफी सक्रिय थे और राहुल गांधी के साथ मसले को सुलझाने में जुटे हुए थे। 

राजस्थान के राजस्व मंत्री हरीश चौधरी के लिए राह आसान नहीं होने वाली है। राहुल गांधी के करीबी बताए जाने वाले हरीश चौधरी को यह जिम्मेदारी ऐसे समय पर दी गई है जब पंजाब में कांग्रेस पार्टी आंतरिक कलह से जूझ रही है। कैप्टन अमरिंदर सिंह से टकराव के बाद प्रदेश अध्यक्ष बनाए गए नवजोत सिंह सिद्धू नए मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी से भी नाराज बताए जा रहे हैं। 
हरीश चौधरी को क्यों मिली जिम्मेदारी?
हरीश चौधरी ने हाल में पंजाब कांग्रेस में मची कलह के दौरान राहुल गांधी और प्रदेश के नेताओं के बीच मध्यस्थ की भूमिका निभाई थी। पूर्व महासचिव और 2017 विधानसभा चुनाव के दौरान पंजाब मामलों के प्रभारी रह चुके चौधरी ने पिछले कुछ दिनों में सिद्धू और चन्नी के बीच मतभेद कम करने में भूमिका निभाई है। बताया जाता है कि चौधरी ने कैप्टन को हटाने के लिए जमीन तैयार की थी। हालांकि, खुद उन्होंने इसे बेबुनियाद बताते हुए कहा था कि पंजाब कांग्रेस में उनकी कोई भूमिका नहीं है। 
रावत महासचिव पद से भी मुक्त
उत्तराखंड चुनाव में व्यस्तता की वजह से हरीश रावत को पंजाब प्रभारी की जिम्मेदारी से मुक्त कर दिया गया है। इसके अलावा आखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के महासचिव और प्रभारी पद से भी उन्हें हटाया गया है। हालांकि उन्हें कांग्रेस कार्य समिति का सदस्य बनाए रखा गया है। कांग्रेस के संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल की ओर से जारी बयान के मुताबिक, पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी ने हरीश चौधरी की नियुक्ति की। वेणुगोपाल ने यह भी कहा कि पार्टी, महासचिव के तौर रावत के योगदान की सराहना करती है।
उत्तराखंड चुनाव की वजह से की थी मांग
पंजाब प्रदेश कांग्रेस में पिछले कई महीनों से चल रही उठापटक की पृष्ठभूमि में रावत ने पिछले दिनों कांग्रेस आलाकमान से आग्रह किया था कि उन्हें राज्य के प्रभारी की जिम्मेदारी से मुक्त किया जाए ताकि वह अपने गृह प्रदेश उत्तराखंड में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव पर ध्यान केंद्रित कर सकें।

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