भोपाल

मध्यप्रदेश में कमलनाथ सरकार ने भ्रष्टाचार के मामलों को राजनीतिक माना और न्यायालय में ख़रीजी पेश कर दी ।

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मध्यप्रदेश में  कमलनाथ सरकार ने भ्रष्टाचार के मामलों को राजनीतिक माना और न्यायालय में खरीजी पेश कर दी 
सांसदों, विधायकों के खिलाफ आपराधिक मामले 17% बढ़े, क्या सुप्रीम कोर्ट के निर्देश की भी  अनदेखी हो रही है ।
 
**भोपाल से संपादित राधावल्लभ शारदा एवं दिल्ली से शिवकुमार शर्मा,की रपट**/
मध्य-प्रदेश में कांग्रेस की सरकार आते ही एक महत्वपूर्ण निर्णय लेते हुए कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री के भ्रष्टाचार के मामले को राजनीतिक करार कर न्यायालय से बापिस ले लिया जबकि राज्य आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो प्रकरण की खरीजी के पूर्व सुप्रीम कोर्ट जा चुका है और  सुप्रीम कोर्ट में याचिका मंजूर कर ली गई है । यह तो एक उदाहरण है इस तरह के अनेकों प्रकरण अन्य प्रदेशों में भी मिल सकतें हैं।

सांसदों और विधायकों के खिलाफ आपराधिक मामले दो साल से भी कम समय में 17 फीसदी से अधिक बढ़े हैं। इनमें पूर्व सदस्य भी शामिल हैं। सुप्रीम कोर्ट में सौंपी गई एक रिपोर्ट में इस बात का जिक्र किया गया है साथ ही कई गंभीर सवाल भी खड़े किए गए हैं।
    

सांसदों और विधायकों के खिलाफ लंबित आपराधिक मामले दो साल में 17 फीसदी बढ़े
अश्विनी उपाध्याय की एक जनहित याचिका पर नौ महीने बाद सुनवाई फिर से शुरू
राज्य सरकारों ने अपनी पार्टी के सांसदों और विधायकों के खिलाफ मामले 
राजनीति में धनबल और बाहुबल की बात पुरानी है लेकिन क्या पिछले कुछ समय में इसका असर कम हुआ है। तो जवाब नहीं है और यह कम होने की बजाय बढ़ ही गया है। देश में मौजूदा सांसदों और विधायकों के अलावा पूर्व सदस्यों के खिलाफ लंबित मामलों की संख्या देख इसका अंदाजा बखूबी लगाया जा सकता है। दो साल के भीतर ऐसे मामलों में 17% का इजाफा देखने को मिला है। सुप्रीम कोर्ट में सौंपी गई एक रिपोर्ट में यह बात सामने आई है।
2 साल में 17 फीसदी बढ़े आपराधिक मामले
देश में मौजूदा और पूर्व सांसदों और विधायकों के खिलाफ लंबित आपराधिक मामले दो साल से भी कम समय में 17% बढ़कर यानी 4,122 से 4,859 हो गए हैं। सुप्रीम कोर्ट को सौंपी गई एक रिपोर्ट ने कुछ सांसदों और विधायकों के धनबल और बाहुबल के कारण मुकदमे में देरी के लिए अदालत की कोशिश के बावजूद निराशाजनक तस्वीर पेश की। मौजूदा और पूर्व सांसदों और विधायकों के खिलाफ लंबित आपराधिक मामलों में दो साल से भी कम समय में 17% की उछाल दर्ज की गई, जो अपराध के साथ राजनीति की गठजोड़ का सबूत है। सुप्रीम कोर्ट के प्रयास के बावजूद ऐसे मामलों की सुनवाई में देरी हो रही है।
 न्यायाधीश एनवी रमना की अगुवाई वाली एससी पीठ ने अश्विनी उपाध्याय की एक जनहित याचिका पर नौ महीने बाद सुनवाई फिर से शुरू करने की पूर्व संध्या पर एमिकस क्यूरी और वरिष्ठ अधिवक्ता विजय हंसरिया ने निर्वाचित प्रतिनिधियों के खिलाफ मुकदमे की स्थिति की निराशाजनक तस्वीर पेश करने वाली रिपोर्ट पेश की।
एडवोकेट स्नेहा कलिता की सहायता से तैयार रिपोर्ट में हंसारिया ने सोमवार कहा कि दिसंबर 2018 में मौजूदा और पूर्व सांसदों और विधायकों के खिलाफ लंबित आपराधिक मामलों की संख्या 4,122 थी। सितंबर 2020 में यह बढ़कर 4,859 हो गई। 2 साल से भी कम समय में 17% की बढ़ोत्तरी दर्ज की गई है। सीबीआई समेत दूसरी केंद्रीय एजेंसियों को सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल 16 सितंबर, 6 अक्टूबर और 4 नवंबर को अपने आदेशों के माध्यम से बार-बार लंबित मामलों की स्थिति रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए कहा। हंसारिया ने कहा कि बार-बार निर्देश देने के बावजूद ऐसी कोई रिपोर्ट नहीं दी गई ।
हंसारिया ने यह भी कहा कि सुप्रीम कोर्ट बार-बार केंद्र सरकार से विशेष अदालतों में केंद्र की मदद से बनाए गए वीडियो-कॉन्फ्रेंस सुविधाओं के बारे में पूछा (जो विशेष रूप से वर्तमान और पूर्व निर्वाचित प्रतिनिधियों के खिलाफ आपराधिक मामलों की सुनवाई के लिए स्थापित किया गया ) लेकिन इस बारे में भी नहीं बताया गया।
गंभीर मामलों में दर्ज केस वापस
एमिकस क्यूरी ने राज्य सरकारों की उस प्रवृति का भी जिक्र किया जो अब एक ट्रेंड बनता जा रहा है जिसमें अपनी पार्टी के सांसदों और विधायकों के खिलाफ दर्ज गंभीर अपराधिक मामले वापस लिए जा रहे हैं। हंसारिया ने यूपी सरकार के उस फैसले का भी जिक्र किया जिसमें चुने हुए प्रतिनिधियों के खिलाफ 76 मामले वापस लेने की बात है जिसमें मुजफ्फरनगर दंगों में संगीत सोम, सुरेश राणा और साध्वी प्राची का नाम शामिल है।

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