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चाणक्य की भूमिका निभाने की कोशिश करते हैं प्रशांत किशोर। क्या कांग्रेस में सारे नेता अनाड़ी है ,।

इन्दौर से श्रद्धा गुप्ता की रपट न्यूजमहादण्ड . काम के लिए संपादित , राजनीतिक दलों में एक होड़ मची हुई है कि प्रशांत किशोर से चुनाव जीतने के गुर सीखे ।ये नेता लोग भूल गए हैं कि यदि जनता उनके कामों से प्रशन्न है तो उनकी जीत कोई नहीं रोक सकता ।
भारतीय जनता पार्टी को छोड़कर देश की अन्य राजनीतिक दलों को चुनाव जीतने के लिए अपने किये कामों पर भरोसा नहीं है इसलिए उन्हें प्रशांत किशोर जैसे व्यक्तियों की जरूरत है ।
अब पंजाब में कांग्रेस में 
सिद्धू से घिरे पंजाब के मुख्यमंत्री  की डगर प्रशांत किशोर के  सलाहकार का पद छोड़ने से चुनाव में कैप्टन की मुश्किलें बढ़ी
पंजाब के सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह चुनाव से पहले अपनी ही पार्टी के नेताओं से घिरे हुए हैं। ऐसे में उन्हें प्रशांत किशोर से उम्मीद थी कि वह चुनाव में अपनी रणनीति से करिश्मा दिखाएंगे लेकिन ऐन मौके पर प्रशांत किशोर ने भी साथ छोड़ दिया है

  दरअसल, 2022 को लेकर मु्ख्यमंत्री पीके पर बहुत भरोसा कर रहे थे, क्योंकि पीके ही थे जिन्होंने 2017 में कांग्रेस की जीत में न सिर्फ अहम भूमिका अदा की थी, बल्कि पंजाब में आम आदमी पार्टी की चल रही आंधी को भी रोक दिया था।
कैप्टन ने 2022 के विधानसभा चुनाव को देखते हुए पीके को 1 मार्च को अपना प्रधान सलाहकार नियुक्त करके कैबिनेट रैंक दिया था। पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव परिणाम आने के बाद से ही पीके को लेकर पंजाब में संशय बना हुआ था, दूसरी तरफ प्रशांत किशोर ने किसी भी राजनीतिक पार्टी की रणनीति बनाने से इन्कार कर दिया था।
प्रशांत किशोर का इस्तीफा इसलिए भी कैप्टन के लिए झटका माना जा रहा है, क्योंकि पंजाब में पहले ही कांग्रेस की राजनीति कैप्टन और नवजोत सिंह सिद्धू के बीच में बंटती हुई नजर आ रही है। सिद्धू को कैप्टन की सहमति के बिना ही कांग्रेस ने प्रदेश प्रधान की कमान सौंपी थी। वहीं, अहम पहलू यह भी है कि प्रशांत किशोर कैप्टन और सिद्धू के बीच में कड़ी भी हैं, क्योंकि सिद्धू को कांग्रेस में लाने में पीके ने अहम भूमिका अदा की थी, जबकि पीके कैप्टन के प्रधान रणनीतिकार भी थे। ऐसे में माना जा रहा था कि प्रशांत किशोर इस बार भी कैप्टन और सिद्धू के बीच की दूरी मिटाने में अहम भूमिका अदा कर सकते थे ।

 सिद्धू के प्रदेश प्रधान बनने के बाद अंडर करंट यह है कि 2022 को लेकर वह मुख्यमंत्री पद का चेहरा हो सकते हैं, जबकि पार्टी की ओर से स्पष्ट किया जा चुका है कि अगले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस कैप्टन के ही नेतृत्व में चुनाव मैदान में उतरेगी। 2017 में बेअदबी कांड जो कि कांग्रेस का एक मजबूत राजनीतिक हथियार था, वह अब बैक फायर कर रहा है। कांग्रेस के ही मंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह पर यह आरोप लगा रहे हैं कि बेअदबी कांड में सरकार कोई भी प्रभावी कदम नहीं उठा पाई।
नवजोत सिंह सिद्धू भी इस मुद्दे को पुरजोर तरीके से उठा रहे हैं। ऐसे में कैप्टन को भरोसा था कि समय रहते पीके न सिर्फ अपनी रणनीति से इस मुद्दे को न्यूट्रल कर सकते थे, बल्कि विधानसभा में कांग्रेस की रणनीति भी बना सकते हैं। यही कारण था कि कैप्टन ने न सिर्फ उन्हें प्रधान सलाहकार बनाया, बल्कि कैबिनेट रैंक भी दिया। पीके ने बतौर प्रधान सलाहकार दो बैठकें भी अधिकारियों व विधायकों के साथ की थी।
अब पीके ने इस्तीफा देकर कांग्रेस को अधर में लटका दिया है। हालांकि मुख्यमंत्री कार्यालय ने इस बात की पुष्टि नहीं की है कि पीके ने मुख्यमंत्री के प्रधान सलाहकार पद से इस्तीफा दे दिया है। वहीं, पीके ने संकेत दिए हैं कि वह भले ही किसी भी राजनीतिक पार्टी के लिए रणनीति नहीं बनाएंगे, लेकिन उनकी कंपनी आई-पैक राजनीतिक क्षेत्र में काम करती रहेगी।

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