भोपाल

MTNL-BSNL पर मोदी सरकार की नजर, बेचेगी 970 करोड़ रुपये की बेशकीमती संपत्तियां

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भोपाल से संपादित राधावल्लभ शारदा एवं वेदप्रकाश रस्तोगी की रपट ,
एक सरकारी वेबसाइट पर दोनों दूरसंचार कंपनियों की अचल संपत्तियों को लगभग 970 करोड़ रुपये के आरक्षित मूल्य पर बिक्री के लिए सूचीबद्ध किया है
सरकार ने इस वित्त वर्ष में विनिवेश से 1.75 लाख करोड़ रुपये जुटाने का लक्ष्य रखा है।
सरकारी खजाने के टोटे को दूर करने के लिए मोदी सरकार सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों को बेचने पर तुल गई है। एयर इंडिया के बाद अब एमटीएनएल-बीएसएनएल पर सरकार की नजर आ गई है। एक सरकारी वेबसाइट पर दोनों दूरसंचार कंपनियों की अचल संपत्तियों को लगभग 970 करोड़ रुपये के आरक्षित मूल्य पर बिक्री के लिए सूचीबद्ध किया गया है।
निवेश और सार्वजनिक संपत्ति प्रबंधन विभाग (दीपम) की वेबसाइट पर अपलोड किए गए दस्तावेजों के अनुसार सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र की दूरसंचार कंपनियों एमटीएनएल और बीएसएनएल की अचल संपत्तियों को लगभग 970 करोड़ रुपये के आरक्षित मूल्य पर बिक्री के लिए सूचीबद्ध किया है। बीएसएनएल की संपत्तियां हैदराबाद, चंडीगढ़, भावनगर और कोलकाता में स्थित हैं। बिक्री के लिए इनका आरक्षित मूल्य 660 करोड़ रुपये है।
वेबसाइट पर मुंबई के गोरेगांव के वसारी हिल में स्थित एमटीएनएल संपत्तियों को लगभग 310 करोड़ रुपये के आरक्षित मूल्य पर बिक्री के लिए सूचीबद्ध किया है। ओशिवारा में स्थित एमटीएनएल के 20 फ्लैटों को भी कंपनी की परिसंपत्ति मौद्रिकरण योजना के हिस्से के रूप में बिक्री के लिए रखा गया है। इनका आरक्षित मूल्य 52.26 लाख रुपये से लेकर 1.59 करोड़ रुपये तक है।
बीएसएनएल अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक पीके पुरवार ने पीटीआई को बताया कि बीएसएनएल की 660 करोड़ रुपये और एमटीएनएल की 310 करोड़ रुपये की संपत्तियों के लिए बोलियां आमंत्रित की गई हैं। पूरी प्रक्रिया को डेढ़ महीने के भीतर पूरा करने की योजना है। उन्होंने कहा कि हम बाजार की मांग के अनुसार आगे बढ़ेंगे। एमटीएनएल की संपत्तियों की ई-नीलामी 14 दिसंबर को होगी।
भारत पेट्रोलियम, शिपिंग कॉर्पोरेशन, एयर इंडिया, आइटी़डीसी और होटल कॉर्पोरेशन जैसी प्रमुख कंपनियों को पहले ही सरकार अपने हाथों से निकालकर निजी हाथों में सौंप चुकी है। बीएसएनएल और एमटीएनएल आज से दस साल पहले तक किसी भी प्राइवेट कंपनी से मुक़ाबला कर रहे थे, लेकिन टेलिकॉम सेक्टर में सरकार और रेगुलेटर की नाक के नीचे एक कंपनी ने जिस तरह से बाज़ार पर कब्जा किया, वो जगजाहिर है।
हालांकि, सरकार का दावा है कि उसका काम बिजनेस करना नहीं है, लेकिन विपक्षी दल हमेशा से आरोप लगाते रहे हैं कि सरकार मुनाफे की कंपनियों को अपने उद्योगपति दोस्तों को बेच देश को बर्बाद कर रही है।

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